हम आखिर मृत्यु की बात क्यों नही करते ?

हम जो महसूस करते हैं शायद उसे कभी लिख या बयां न कर पाए सिर्फ महसूस ही कर सके,
ठीक वैसे ही जैसे
दुनिया में कुछ चीज़े को झुठलाया नहीं जा सकता न ही उससे पल्ला झाड़ा जा सकता है।

मौत, जी हाँ मौत और शब्दों में कहें जो सुनने में अच्छा लगे तो चले जाना, और चले जाना भी कैसा, की कभी वापस ही न आना और वापस इंसान आये भी तो कैसे खुद ही तो लोग जला देते हैं, या दफना देते हैं कि कोई वापस आ भी न सके।।

मौत को यहां मौत ही कहते है,क्या कोई अच्छा शब्द इस्तेमाल किया जाए हक़ीक़त से क्या पल्ला झाड़ा जाए, और ज़िन्दगी और मौत दोनों एक सिक्के के दो पहलू ही तो हैं ,ज़िंदगी है तो मौत आनी है, पर हम बात क्यों नही करते मौत के बारे में ?

मैं अक्सर बैठा सोचा करता हूँ , की मरने के बाद क्या होता होगा और जो ख्याल आता है आपके साथ ज़ाहिर करता हूँ , लिख के शायद आपको सब बाता न पाऊं पर कोशिश करता हूँ, खैर बात करना भी सही नही होता है न जाने क्यों ?

कुछ चुनिंदा ख़यालों के आने से पहले कुछ चीज़ों के बारे में बात करते हैं,
दुःख ,पीड़ा या किसी अपने के खोने का एहसास मैं महसूस कर सकता हूँ और अक्सर सोचता हूँ वो जाने वाला कैसा महसूस कर रहा होगा ,मेहसूस कर भी पा रहा होगा या नहीं, जब कोई चला जाता है कभी वापस न आने के लिए तो उस इंसान के साथ जो सबसे खास और अहम लोग जुड़े होते है उनकी पीड़ा को शायद समझा नही जा सकता ।।

अपने के खोने का एहसास, वो शख्स जिसे आपने हमेशा से अपने साथ पाया हो ,और वो एका एक कही चला जाये वापस न आने के लिए, दर्द ,लचारापन , हताशा मैं महसूस करने की कोशिस ही करता हूँ क्योंकि मैं तो क्या कोई भी उस शख्स का दर्द उस समय नहीं महसूस कर सकता।।

ये तो हुई बाकियों की बात जिन्होंने खोया है किसी शख्स को, अब उसकी बात करते है जिसकी मृत्यु हुई है।

वो शख्स क्या महसूस कर रहा होगा इस बारे में जो मैं सोचता हूँ उसे बताता हूँ

  1. झूठ नहीं बोलूँगा ये खयाल गरुण पुराण,कुछ फिल्मों को देख, Paranormal science के समाकलन से ज़ेहन में आया था और आज भी सबसे पहला खयाल यही होता है, क्या हो अगर इंसान की मृत्यु के बाद बिल्कुल वही इंसान चारो तरफ देखे और अपने ही शरीर को नीचे देखे और चारो तरफ चिलाये और बोलने की कोशिश करे मगर कोई उसकी बात न सुन रहा हो, वो फिर से अपने शरीर पर लेट कर वापस जिंदा होने की कोशिस करे मगर कुछ न हो सके ,चीखे चिलाये मगर कुछ न हो कोई उसे सुन देख न पाए, और वो अपने परिवार वालो को रोता हुआ देखे, कितनी पीड़ा हो रही होगी उस शख्स को कोई महसूस कर सकता है? नहीं आप नही कर सकते कभी भी, वो सोचे कहा जाय क्या करूँ ,और ऊपर से उसे ये भी सोचना है ये मेरे छोटे छोटे बचों का क्या होगा, या बहन का क्या किसी का भी जिसकी जिम्मेदारी थी उसपर , और अपने ही लोगो को उसकी लाश को नष्ट करने की जल्दी को देख का क्या महसूस करता होगा वो शख्स ये खयाल है जो आता है , और भी कई चीज़े है पर सिर्फ लिख कर बताया नहीं जा सकता।।

हमको किसी के जन्म लेते ही पता होता है कि एक दिन मृत्यु होनी है तो हम ये क्यों मान लेते है जैसे हमेशा यहीं रहना है, हम आखिर इस बारे में बात क्यों करते?
हम आखिर क्यों अपने चाहने वालो के साथ ऐसा नही व्यवहार करते जैसे हमारे पास चुनिंदा समय है क्यों नहीं हम उनको अपने सारे एहसास बयां कर देते जो हम उनसे कहना चाहते हैं मरने से पहले,
हम आखिर मृत्यु की बात क्यों नही करते ?

~Rishabh
2 May 2021

Author: Rishabh Mishra

अभी मैं उस अबोध बालक की तरह हूँ जो समुद्र के किनारे पड़े सीपो को इकठा कर रहा है जब की मोती तो समुद्र के तल में है।

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